ॐ तत्सत्
”समाज में अघोर पंथ को लेकर बहुत सी भ्रांतिया है जिसको दूर करने के लिए अघोर पंथ पर अपना विचार लिख रही हूँ जो आपको सही मार्ग बताएगा की सही मायने में अघोर की सही परिभाषा क्या है। सबसे पहले हम जानेगें की अघोर किसे कहते है।”
औघड़ जीवन में प्रवेश करना आसान नहीं होता बहुत कम ही ऐसे महान आत्मा जन्म लेती है धरती पर जो औघड़ पद को प्राप्त करें।
औघड़ जीवन में प्रवेश करते ही व्यक्ति को सांसारिक सुख सुविधा से विमुख होना पड़ता है। कठिन तपस्या और आचरण का अनुसरण करना पड़ता है तब जाकर एक महान औघड़ का उदय होता है।
यह अघोर पंथ ऐसा रास्ता है जिस पर चलकर महापुरुष अघोरेश्वर की श्रेणी को प्राप्त करते है। इस अघोर तपस्या में संत -महात्मा स्वयं को विषम से विषम परिस्थिति में डालकर अपने तप मे मन कर्म वचन से डटे रहते हैं।
अघोर क्या है
अघोर गंगा का पर्यायवाची है, जिस प्रकार गंगा मनुष्य के पापो को धोती है उसी प्रकार अघोर घृणा- रूपी विष का मार्जन कर जनसमूह को सही रह बताता है।
अघोर, अघृण होता है। अघोर पंथ सहज का मार्ग है, वह घृणा- रूपी विष को कभी ग्रहण करने के लिए तैयार नहीं होता है। वह घृणा रूपी विष का मार्जन करता है। मगर इसे समझना बहुत की कठिन है|
औघड़
अघोर पंथ पर चल कर अपने तप एवं शील से आपार शक्तियों को अपने बस में जो रखता है वह औघड़ कहलाता है| जो सबका कल्याण करता है अनमिल आखर का ही पूरक औघड़ हैं।
जो विधि के सभी प्रपंचो का त्याग कर प्राण की उन्मुक्त स्थिति में विचरण करते रहते हैं।महत्वाकांक्षाओ के प्रपंच से विरत व्यक्ति को ही अभयधड़ कहते है या औघड़ कहते है।
औघड़ अघोरेश्वर में आत्म बुद्धि होती हैं, देह बुद्धि नहीं। उनका व्यवहार वैकल्पिक नहीं होता। उसका प्रारंभ वहां से होता है जहां से सब थक कर लौट चुके हैं। जो अथाह है ,थाहे नहीं जा सकते, वह अघोर, औघड़ ,अघोरेश्वर अयोनि -जन्मा सरीखे होते हैं।
औघड़-अघोरेश्वर शिव को कहते हैं और ‘शिवों’ शब्द कल्याण से संबंधित है। औघड़ महात्माओं की सभी कहानियों के पीछे हमारे सुख और शांति के साथ अहंकार रहित जीवन का वह लक्ष्य छिपा हुआ है जो हमारे इसी जीवन में परम आवश्यक है।
जिनमें अपार करुणा होती हैं ,संवेदना होती है ,जो अघृण होते हैं । किसी भी तरह के भेदभाव तथा घृणा से दूर रहकर औघड़ -अघोरेश्वर सभी के हित तथा सुख के लिए और समाज तथा राष्ट्र के सुव्यवस्था के लिए सतत् चिंतित तथा प्रयत्नशील रहते हैं ।
औघड़ -अघोरेश्वर पृथ्वी के समान होते हैं। (जो किसी का न तिरस्कार करती है, न आदर )
यह लोग श्वपच बंधुओं के साथ में भी रहते तथा खाते -पीते हैं ।यह आत्मा में ,आत्म-बुद्धि में विश्वास रखते है। औघड़ कर्म के पीछे नहीं भागते ।निष्क्रिय भी नहीं होते । कर्ता अकर्ता के मध्य में अपने प्राण में वैश्वानर की आहुति देते हैं।
अघोरेश्वर की कृपा जिस पर होती है ,वह ठोकरो से मृतकों को भी जिला देता है वह तो जिंदादिल होता है। कहते हैं , कि औघड़ लोग इस संसार तथा उस संसार से पार करने वाले नाविक हुआ करते हैं ।
इन्हें नाविक कहकर ही संबोधित किया जाता था घाटों पर आग जलाकर रखने के कारण इन्हें औघड़ कहने लगे। यह लोग अपने नाम के साथ नाविक जोड़ रखे थे।
औघड़-अघोरेश्वर
जो औघड़ अनित्य को नित्य नहीं मानता नाशवान को अनाशवान नहीं मानता, परिणाम को अपरिणाम नहीं मानता, जो परिणाम है जो दुखः है, जो मोह है ,उससे वितराग होकर महापुरुष संत महात्मा नित्य को अनित्य समझ कर विचरते हैं। वह अघोरेश्वर की श्रेणी में आते हैं|
अघोरेश्वर के स्वभाव में आचरण में व्यवहार में चर्या में न परिवर्तन होता है न परिणाम होता है न घटाव- बढाव होता है।
एक सा, एक रस ,बने रहते हैं। सबपर समदृष्टि, सबके लिए कल्याण मैत्री और दया होती है।एक सा सदैव कोई नहीं रहता ….अघोरेश्वर में कोई ना कोई परिणाम होता है ना परिवर्तन होता है।
न अघोरेश्वर में अभाव होता है ना परिणाम होता है ना उतार-चढ़ाव होता है संसार में कोई ऐसा दूसरा प्राणी नहीं है। जैसे महासमुंद्र का एक ही रस है लवण रस, इसी प्रकार अघोरेश्वर का यह वाणी आदर्श भी एक रस है– विमुक्त रस।
औघड़ कौन होते है?
औघड़ क्षुद्र नदी की तरह नहीं होते हैं जो थोड़े से विचार व्यवहार पाकर अपने संकीर्ण स्वार्थों के चलते उतावले होकर भीड़ को गलत राह की तरफ पाँव बढाने, लोगों को जाति मजहब तथा अन्यान्य संकीर्णताओ में बाटकर अपने राष्ट्र को खंडित करे।
ये लोग समाज पर भार बनकर नहीं रहते हैं आज के वकील तथा डॉक्टरों से भिन्न बिना किसी तरह का परितोषित या फिस लिए निस्वार्थ भाव से विभिन्न रूपों में समाज कल्याण के कार्य जैसे औषधि, विभूति, सलाह तथा कल्याणकारी उपदेश देते रहते हैं|
और आचार विचार तथा समय काल के अनुरूप व्यवहार से सही मार्गदर्शन करते रहते हैं। मांग कर ही जीवन यापन करते हैं तथा श्रद्धा विश्वास स्नेह एवं प्रेम ही इनका शुल्क है।
औघड़-अघोरेश्वर मुद्रा और अवस्था
ये शांत स्थिर होते है, समुन्द्र की तरह विशाल होते है, जिसका कोई थाह नहीं लगा सकता …..महान औघड़ में नियति को भी बदल देने की सकती होती है,जो कोई नहीं कर सकता वो ये कर दिखा देते है| इनकी हट और स्वाभिमान के आगे ईश्वर को भी झुकना पड़ता है |
पंडित ,ज्योतिष, साधु ये सब भगवन से मांगकर देते है या प्रार्थना करते है परन्तु औघड़ में वो शक्ति होती है जिसके मुँह से निकली हुई वाणी स्वम् ब्रम्हा भी नहीं काट सकते | ये अपने तपो बल से सब कुछ हासिल किये होते है बहुत बिरले औघड़ नजर आते है जैसे जंगल में शेर हो |
वो शेर की तरह अकेले रहना जायदा पसंद करते है इसलिए ये कम ही दिखाई और सुनाई देते है| ये लोग पुरे बर्ह्माण्ड में विचरण करते है , इनकी मुद्रा और अवस्था देखकर ही इनसे कुछ कहना या बोलना चाहिए |
इनसे कुछ छिपा नहीं रहता पर ये कभी दिखाते या बताते नहीं | इनको कोई ललक या चाह नहीं होती, ये मस्तमौला होते है इनको मान अपमान की भी कोई चिंता नहीं होती | इनके लिए कोई भी वस्तु दुर्लभ नहीं, ये बहुत दयालु होते है |
ऐसा नहीं है कि इस संसार में जन्म लेने के बाद उनको दुख का सामना नहीं करना पड़ता या उन्हें दुख नहीं होता, दर्द नहीं होता ,वेदना नहीं होती। उसको यह संसार की ,देह धरने पर, यह शरीर धरने पर ,उस पर हर तरह की जो एक मनुष्य के साथ होता है वह उसके साथ बितता है |
उस सभी विघ्न-बाधाओं को झेलता हुआ वह वैसे ही दिखेगा |मगर वह महानाग की तरह धीरे-धीरे क्षीर पीता है, निगलता है। उसे उन बड़े अच्छे आत्माओ का सहयोग होता है मदद होता है।
महान औघड़ो का जन्म
औघड़ -अघोरेश्वर की आत्मा वायुमंडल से उच्च या सामान्य कुल की सत्यवती, तपस्विनी नारी के गर्भ से उत्पन्न बालक के शरीर में प्रविष्ट करती है।
ये बाँस के वंशज की तरह किसी ना किसी भूभाग पर उदय होते रहते हैं अल्प संख्या में,एक-दो की गणना में। कहते है, जिस कुल में एक औघड़ ने जन्म लिया हो उसकी सात पुस्ते तर जाती है|
औघड़ -अघोरेश्वर समवर्ती होते हैं ।
समवर्ती प्रेम की मूर्ति होती है। वे किसी में भेद नहीं मानते ।उनमें न प्रशंसा के प्रति कोई लगाव होता है ना ही निंदा के प्रति| औघड़ -अघोरेश्वर को स्वर्ग या नरक पाप या पुण्य की परिकल्पना एकदम नहीं होती है|
औघड समदर्शी ही नहीं समवर्ती भी होते हैं। यह उनका बड़प्पन है कि वह सबके यहां खानपान स्वीकार कर लेते हैं।। सूर्य, चंद्रमा पृथ्वी, अग्नि और वायु के समान ही उनमें देह बुद्धि नहीं है। वे अभेद होते हैं।
“भेदो न भासते अभेद भासते सर्वत्र”
जो औघड की शरण में जाता है वह कभी खाली हाथ नहीं वापस आता|जो संसार सागर में डूब रहा हो वह अघोरेश्वर को याद करें, तो हाथ ऊपर आते ही सर ऊपर आते ही ,अघोरेश्वर उपदेश रूपी डोरी से उसे बांध लेते हैं और संसार सागर से उसे उबार देते हैं|
अघोर पंथ में तप और आचरण का महत्व
अघोर पंथ में सेवा का अर्थ तो यह होता है कि बाहर कितना हि हलचल हो बहुत बड़ी सेना और शासक भी सामने से गुजर जाए फिर भी उसकी तरफ बिल्कुल ध्यान न जाए और व्यक्ति अपने कार्य में ही तल्लीन रहे उसका मन -चित्त बिल्कुल स्थिर रहे। उसे हम कहते हैं अघोराचल (अघोर+ अचल )।जो इतना अचल है वह अघोर है, स्थिर है|
यह तो सत्य ही है कि सभी कुछ बने हुए काल- कवलित {समाप्त}हो जाते हैं। काल किसी वस्तु किसी प्राणी को नहीं छोड़ता ।आकाश और पृथ्वी भी काल कवलित होते रहते हैं, इसलिए सुनकर या देखकर शरीर से मोह करना इसके लिए शोक करना दुख करना यह सब प्रायः संत,महात्मा, औघड़ -अघोरेश्वर के लिए वांछनीय नहीं है।
ये एक क्षण भी अपने कार्यों के करने से नहीं रुकते । वह किसी अन्य के कार्यों से भी नहीं रुकते ।वह सूर्य के सदृश्य अनवरत चलते रहते हैं सदैव चलते रहते हैं सब पर उनकी समान दृष्टि रहती है।
जो औघड़ साधु संगत किए होता है सज्जनों का संग किए होता है साधु की सभा में बैठा होता है, अघोरेश्वर का अनुगमन किए होता है। अघोरेश्वर के माप-दण्ड से तोला होता है। जादू -टोना, तंत्र- मंत्र में विश्वास नहीं करता वही औघड़ होता है। और औघडो़ की ही विचारधारा बुद्ध की विचारधारा में भी सन्निहित है।
औघड़ ना ना प्रकार की सिद्धियों का स्वामी होता है ।एक से अनेक हो जाता है अनेक से फिर एक हो जाता है। प्रकट हो जाता है छिप जाता है ,दीवार के पार, प्रकार के पार उसे छूता हुआ चला जाता है ।जैसे पानी में और पानी के ऊपर भी चलता है पृथ्वी पर ,आकाश में भी पालथी मारकर ऐसे जाता है जैसे कोई पक्षी हो ।इस प्रकार के सिद्धिमान चंद्र सूर्य को भी हाथ से छूता है। ब्रह्मलोक तक सशरीर पहुंच जाता है। एक साधु अघोरेश्वर होता है ,क्षीणास्त्राव होता है। ऐसा आदमी न मापा जा सकने वाला आदमी होता है।
औघड़ -अघोरेश्वर तंत्र मंत्र में विश्वास नहीं करते
औघड़ तांत्रिक नहीं होते। वे तंत्र में विश्वास नहीं करते अनर्गल देवी देवता में विश्वास नहीं करते। वह आपकी श्रद्धा और विश्वास में विश्वास करते हैं। और अपने में विश्वास करते हैं ना की किसी बाहरी पर। ……इसलिए वर्णाश्रम व्यवस्था के जन्मदाता आज भी और औघडो़ को क्रूर दृष्टि से देखते हैं तथा इनके बारे में भ्रांतियां पैदा करते हैं।
जो औघड़ साधु संगत किए होता है सज्जनों का संग किए होता है साधु की सभा में बैठा होता है, अघोरेश्वर का अनुगमन किए होता है। अघोरेश्वर के माप-दण्ड से तोला होता है। जादू -टोना, तंत्र- मंत्र में विश्वास नहीं करता वही औघड़ होता है। और औघडो़ की ही विचारधारा बुद्ध की विचारधारा में भी सन्निहित है।
अघोर पंथ में भिक्षा का महत्व
अघोर तपस्या में भिक्षा मांगने की रीत रही है। भिक्षा मांगना एक आध्यात्मिक अभ्यास है जो अघोर समुदाय को नम्रता और सदभाव देता है ।
अघोर भिक्षुक धनी और निर्धन के पक्षपात से ऊपर होते हैं उनके मार्ग में सभी सामान है चाहे वह दीन हो या धनी हो पर उन सभी में परम सत्य का द्वार खोलने का सामर्थ है, जिससे उनका ज्ञान उदय हो, उन्हें मुक्ति मिले।
भिक्षा मांगने से गरिमा नहीं घटती परंतु जो भिक्षा देता है उसका सामर्थ्य और मनोबल बढ़ता है, जो उसके लिए केवल एक स्मरण साधना मात्र है।
भिख मांगने और भिक्षुक में दोनों में बहुत बड़ा अंतर है।जो भीख मांगते हैं वह कार्य से जी चुराते हैं भिक्षुक लोग समग्र शक्ति इकट्ठा कर जन-जन के लिए मोक्ष का मार्ग खोलते हैं । भिक्षा मांगने से जो हंकार का भाव उनके अंतर मन में गांठ बांध कर बैठा हुआ है वह टूट जाता है। भिक्षा देना भी मनुष्य के लिए उनके बुरे कृतियों को समाप्त करने का एक मार्ग है।
इसलिए कोई औघड़ तीन बार आवाज लगाकर भिक्षा मांगे तो उसे भिक्षा अवश्य देना चाहिए क्योंकि वो अपने तप के वजह से भिक्षा मागने को बाध्य हैं।
इस प्रकार अघोर पंथ मे भिक्षा मांगने वाले साधु महात्मा भिक्षा ना मिलने पर भी अपना धैर्य नही खोते वह चुपचाप तीन बार भिक्षा मांगने के बाद वहां से चले जाते है। यही इनकी पहचान होती हैं जो अघोर तप में होते है।
विश्वास की शक्ति
औघड़ के लिए कोई भी वस्तु खाद सामग्री दुर्लभ नहीं होती। वह जब चाहे तब उसको प्राप्त कर सकते हैं ,परंतु अपनी शक्ति का दिखावा नहीं करते। क्योंकि अगर वह ऐसा करते हैं तो मनुष्य को कर्म करने से वंचित कर देते हैं।
मनुष्य चमत्कार पर निर्भर होने लगते हैं इसलिए वह खुद भी श्रम करते हैं और यह श्रम करते हुए दिखाते और प्रेरणा देते हैं कि मनुष्य को श्रम से हर चीज प्राप्त करना चाहिए। क्योंकि उन्होंने भी जो शक्तियांँ अर्जित की है, जो सिद्धियां प्राप्त की हैं वह उनका अपना खुद का श्रम होता है।
औघड़ -अघोरेश्वर लोगों की मदद करने को तत्पर रहते हैं जो स्वम की मदद खुद करता है और उसके रास्ते के बिघ्न बाधा को हटाते है। उनकी तेज दृष्टि उस व्यक्ति के उपर छाया बना कर उसकी रक्षा करती है जो उन पर अटुट विश्वास करते है।
ऊँ आघोश्वराय नमः …🙏🙏💐
ऊँ आघोरेेश्वराय नमः …🙏🙏💐
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